साल 2002 शाहजहांपुर हत्याकांड: तीन बच्चियों की गोली मारकर हत्या करने के दो दोषियों को सजा-ए-मौत

साल 2002 हुई तीन बच्चियों की हत्या के मामले में न्यायालय ने दो दोषियों को सजा-ए-मौत सुनाई है। साथ ही जांच अधिकारी के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करने का आदेश दिया है।

यूपी के शाहजहांपुर में साल 2002 में तीन बच्चियों की गोली मारकर हत्या मामले में न्यायालय ने दो दोषियों को सजा-ए-मौत सुनाई है। हत्या को दुर्लभ में दुर्लभतम श्रेणी का अपराध मानते हुए अपर सत्र न्यायाधीश-43 सिद्घार्थ कुमार वागव ने दोषी नरवेश कुमार और राजेंद्र को मौत की सजा सुनाई।

साथ ही मिथ्या साक्ष्य गढ़कर बेटियों के पिता अवधेश कुमार को हत्यारा सिद्घ कर जेल भेजने पर जांच अधिकारी होशियार सिंह के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी ने समाज को एक गलत संदेश दिया है कि पुलिस सर्वशक्तिमान है, निर्दोष को दोषी और दोषी को निर्दोष बनाने में सक्षम है। इससे समाज में यह संदेश गया है कि पुलिस में शिकायत दर्ज कराने जाने से पहले सावधान रहें।

बहुत साल बाद अब चैन की नींद सो सकेंगे- बेटियों के पिता ने कहा

19 साल बाद आए फैसले पर बेटियों के पिता अवधेश ने संतोष जताया है। अवधेश ने बताया कि हत्याकांड के बाद पुलिस ने उसे गरीबी के कारण अपनी तीन बेटियों की हत्या करने का आरोपी बनाते हुए जेल भेज दिया था। डेढ़ महीने बाद उसे जमानत मिली थी। अब असली अपराधियों को सजा हुई है। बहुत साल बाद अब चैन की नींद सो सकेंगे।

पुलिस की भूमिका पर न्यायालय ने की कठोर टिप्पणी

न्यायालय ने अपने आदेश में लिखा है कि पहले भी कई भीषण अपराध हुए हैं लेकिन इस घटनाक्रम को जो दुर्लभ से दुर्लभतम श्रेणी का बनाता है, वह पुलिस की कार्यप्रणाली भी है। तीन छोटी परियों के पिता अवधेश को ही पुलिस जांच अधिकारी ने हत्यारा साबित कर जेल भेज दिया था। तीन छोटी बच्चियां बड़ी होकर किसी की पत्नी, किसी की मां, किसी की बहू बनतीं। अवधेश और उसकी पत्नी शशि को हत्यारों ने प्यारी बेटियों से हमेशा के लिए जुदा कर दिया। अपराधियों के इस कृत्य ने परिवार को पूरी तरह से तबाह किया है। इसीलिए हत्यारों और उनके सहयोगियों को सजा भी बराबर के अनुपात में मिलनी चाहिए।

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