देहरादून. उत्तराखंड पुलिस का ऐसा चेहरा देखने को मिला है, जिसने पुलिस की छवि पर धब्बा लगाया है. दून पुलिस फर्जी मुकदमे दर्ज करने, मारपीट के नाम पर अवैध वसूली कर रही है. इस तरह का आरोप सामने आते ही पूरे पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया है क्योंकि इसका खुलासा तब हुआ, जब राज्य के पुलिस कप्तान ने खुद संज्ञान लिया और डीजीपी ने दो पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया. यह पूरा मामला उस शिकायत से खुला, जिसे पुलिस अफसरों ने नज़रअंदाज़ किया तो वह आखिरकार डीजीपी तक पहुंची.
दरअसल, मामला सहसपुर क्षेत्र की धर्मावाला चौकी का है, जहां चौकी इंचार्ज दीपक मेठानी, और सिपाही त्रेपन सिंह पर गम्भीर आरोप लगे. एक शिकायतकर्ता ने डीजीपी अशोक कुमार के सामने सबूतों के साथ यह शिकायत रखी थी कि चौकी इंचार्ज और कांस्टेबल ने उनको फर्जी मामलों में फंसाने की धमकी देकर कहा कि ‘बचना है तो एक लाख रुपये दो’. शिकायतकर्ता ने यह भी कहा कि उसने डीजीपी से पहले शिकायत और अधिकारियों से की थी, लेकिन समस्या बनी रही.

उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार.
कैसे सामने आया पुलिस का आपराधिक चेहरा?
शिकायतकर्ता राकेश सिंह ने बताया कि चौकी इंचार्ज और सिपाही की बातें फोन पर रिकॉर्ड कर उन्होंने अपनी समस्या पहले एसएसपी देहरादून के पास रखी थी, लेकिन कोई हल नहीं निकला. तब उन्होंने मंगलवार को विकासनगर निवासी पीड़ित ने डीजीपी अशोक कुमार के सामने प्रार्थना पत्र दिया, जिसमें आरोप लगाया कि मेठानी एवं त्रेपन उनके विरुद्ध फर्जी मुकदमा दर्ज करने और मारपीट करने की धमकी देकर एक लाख रुपये की मांग कर रहे थे.
यही नहीं, शिकायत के साथ सिंह ने सबूत के तौर पर DGP के सामने एक ऑडियो भी प्रस्तुत किया. पूरे केस में चौकी प्रभारी एवं सिपाही का आचरण संदेह के घेरे में दिखा और पुलिस की गरिमा के अनुरूप नहीं पाया गया. डीजीपी अशोक कुमार ने दोनों पर कर्रवाई करते हुए निलम्बन के आदेश जारी किए तो पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया.