वर्चुअल वर्ल्ड में हीरो बनने का चस्का बढ़ा रहा है जिंदगी से दूरी
चिड़चिड़े और आक्रामक होकर मां-बाप के लिए समस्या बन रहे हैं एडिक्शन के शिकार बच्चे
शहर में मनोचिकित्सकों के पास औसतन रोज आ रहे हैं दस केस, बिना इंटरनेट नहीं रह पाते
बरेली। इंटरनेट पर उपलब्ध रोमांचक ऑनलाइन गेम्स बच्चों के दिलोदिमाग पर हावी हो रहे हैं। रंग-बिरंगी थीम और म्यूजिक के कॉम्बिनेशन के साथ हर पल बदलती दुनिया और पल-पल बढ़ता रोमांच मोबाइल की छोटी स्क्रीन पर वर्चुअल वर्ल्ड में युवाओं और किशोरों को एडिक्शन का शिकार बना रहे हैं और अंतत: यह अवसाद में तब्दील हो रहा है। शहर के मनोचिकित्सकों के पास औसतन रोज ऐसे दस केस पहुंच रहे हैं।
मनोचिकित्सक डॉ. हेमा खन्ना के मुताबिक ऑनलाइन गेम्स ने बच्चों का बचपन छीन लिया है। पार्क में खेलकूद बंद हो चुका है और उन्हें इंटरनेट की दुनिया भाने लगी है। आभासी दुनिया में उनके हाथ तरह-तरह के गेम लग चुके हैं। घंटों ऑनलाइन गेम खेलने में व्यस्त रहने वाले बच्चों खाना-पीना तक भूलने की प्रवृत्ति विकसित होने लगी है। ऑनलाइन गेम बच्चोें को चिड़चिड़ा और आक्रामक भी बना रहे हैं। ज्यादातर अभिभावकों का इस पर ध्यान तब जाता है जब देर हो चुकी होती है। चिंता की बात यह कि ऑनलाइन गेम का चस्का युवाआें के साथ किशोरों में भी बढ़ रहा है। 12 से 18 वर्ष की उम्र तक के बच्चों सबसे ज्यादा यह एडिक्शन बढ़ रहा है।
डॉ. हेमा खन्ना कहती हैं कि अगर एक बार बच्चे को इंटरनेट गेम की लत लग जाए तो फि र बिना इंटरनेट रहना उनके लिए मुश्किल हो जाता है। बच्चे इंटरनेट की जिद करते हैं। माता-पिता के मना करने पर कई बार आक्रामक तक हो जाते हैं।
यह एडिक्शन बच्चों के विकास के लिए बड़ा खतरा
डॉ. हेमा खन्ना कहती है कि एक-दूसरे को हराने की होड़ में बच्चे लगातार खेलते रहते हैं। दस मिनट का गेम कब घंटे-दो घंटे में बदल जाता है, बच्चों को पता ही नहीं चलता। यहीं से गेमिंग एडिक्शन शुरू होता है जो बढ़ते बच्चों के विकास के लिए बहुत बड़ा खतरा है। बच्चों को लगता है कि वे वर्चुअल वर्ल्ड के हीरो हैं और उनके आसपास के लोग कुछ भी नहीं है। वर्चुअल वर्ल्ड के हीरो बनने के चक्कर में वे वास्तविक जीवन से दूर हो जाते हैं। कई ऐसे केस भी आए हैं जब बच्चे खुद को कमरों में बंद कर लेते हैं और माता-पिता तक से बात नहीं करते।
एशियाई देशों में इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन ज्यादा
एक अध्ययन के मुताबिक 12 से 20 साल के बच्चों और युवाओं में इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर आम है। उत्तरी अमेरिका और यूरोप की तुलना में एशियाई देशों में इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर के केस ज्यादा आम हैं। अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन के बढ़ते मामलों पर स्टडी कर रहा है इसलिए अब तक इसे बीमारियों की सूची में शामिल नहीं किया गया है। हालांकि जिस तेजी से इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन के केस दुनिया भर में बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए विशेषज्ञों को डर है कि कहीं जल्द ही इसे बीमारी का दर्जा न मिल जाए।
यह एडिक्शन क्यों है खतरनाक
-ज्यादा वक्त इंटरनेट गेम्स खेलने वाले बच्चों की एकाग्रता कम हो जाती है।
-ऐसे बच्चों का झुकाव ज्यादातर नेगेटिव मॉडल्स पर हो जाता है।
-बच्चों में धैर्य कम होने लगता है और वे पावर में रहना चाहते हैं।
-सेल्फ कंट्रोल खत्म हो जाता है, कई बार हिंसक होने लगते हैं।
-सोशल लाइफ से दूर होकर अकेले रहना पसंद करने लगते है।
-बच्चों के व्यवहार और विचार दोनों पर इंटरनेट गेमिंग का असर होता है।
ऐसे किया जा सकता है बचाव
डॉ. हेमा खन्ना ने बताया कि इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन से बचने के उपाय आसान हैं। बच्चों का मन जिस काम में लग रहा है, उसेे करने दें। उन्हें रचनात्मक कार्यों में लगाएं। उनके साथ सुबह-शाम खेलें। इससे वे तनाव का शिकार नहीं होंगे। उनसे छोटे-छोटे सामाजिक मुद्दों पर भी बात करें। अपने बचपन के दिनों को उनके साथ साझा करें। यदि मूल रूप से किसी ग्रामीण परिवेश से हैं तो महीने में एक दिन उन्हें गांव ले जाएं और वहां के लोगों से मिलवाएं।
बरेली कॉलेज में मनोविज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. सुविधा शर्मा ने बताया कि ऑनलाइन गेम खेलने वाले बच्चों का सोशल दायरा खत्म हो जाता है और बच्चे अकेलापन पसंद करने लगे हैं। इससे उनकी सोचने की क्षमता बाधित हो जाती है। फिर उनकी रुचि सिर्फ गेम में रह जाती है और भविष्य या करियर के बारे में नहीं सोचते हैं। एक समय में वे गेम में भी ऊबने लगते हैं लेकिन इसकी लत लगने के चलते बाहर नहीं आ पाते। सामाजिक दायरा पहले ही खत्म हो चुका होता है, इस वजह से वे किसी से बात नहीं कर पाते और अवसाद के शिकार हो जाते हैं।
यह भी ध्यान रखें अभिभावक
– बच्चों के सामने खुद ज्यादा मोबाइल न चलाएं, न कोई एडल्ट गेम खेलें।
– अगर उन्हें कुछ देर के लिए मोबाइल दे रहे हैं तो अपने सामने ही गेम खेलने को कहें।
– बच्चों को समय दें और उन्हें अपने साथ घर के छोटे-छोटे काम जैसे बुक्स, टॉयज रखना सिखाएं।
– उन्हें समय जरूर दें, उनसे बातें करें और उनके मन में क्या चल रहा है, यह जानने की कोशिश करें।
– ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान खास ध्यान देना चाहिए।
– अगर बच्चा एकांत में मोबाइल ज्यादा इस्तेमाल करता है तो उस पर ध्यान दें।
– मोबाइल पर बच्चे को अधिक वक्त देते हुए देखने की वजह जरूर तलाशें, खासकर तब जब उसकी उम्र 12 वर्ष से 18 वर्ष के बीच हो।