अनदेखी : काफी समय से पिलर दे रहा था गड़बड़ी के संकेत

जलालाबाद में गिरा कोला घाट पुल दो हिस्से में बंटा

शाहजहांपुर। कोलाघाट पुल का टूटना सिर्फ एक हादसा नहीं है। देखरेख और दूरदर्शी सोच के अभाव का नतीजा है। समय रहते अगर पिलर धंसने का अंदाजा लगाया जा सकता तो शायद हादसे को टला जा सकता था। पिलर की स्थिति काफी समय से संकेत दे रही थी कि सबकुछ ठीक नहीं चल रहा।

कोलाघाट के पुल की लंबाई 18 सौ मीटर है। इस पुल पर 60 पिलर बने हुए हैं। सोमवार तड़के पिलर नंबर सात के ढहने से करीब दो सौ मीटर का हिस्सा जमीन पर गिर गया। वेल (कुआं) समेत पिलर जमीन के नीचे धंस गया। पुल का बेस तकरीबन 22 मीटर पानी के नीचे था। जबकि पिलर की लंबाई लगभग सात मीटर थी। इंजीनियरिंग एक्सपर्ट के मुताबिक आरसीसी पुल का जीवन कम से कम 50 वर्ष होता है। कई बार पुल डेढ़-दो सौ साल भी चल जाते हैं। अंग्रेजों के जमाने के पुल आज तक चल रहे हैं। लकड़ी के पुल तक कई दशक सुरक्षित रहते हैं। ऐसे में सवाल खड़ा हो रहा है कि डेढ़ दशक बीतने से पहले ही कोलाघाट का पुल कैसे ढह गया। ऐसा नहीं था कि इंजीनियरिंग विभाग को इसका बिलकुल अंदाजा नहीं था। पुल में बार-बार आ रही तकनीकी खराबी के मद्देनजर इंजीनियरों की इस पर निगाह थी। छह अक्तूबर को बीस दिन के लिए यातायात बंद कर पुल की मरम्मत की गई थी। इस दौरान बेयरिंग को बदला गया और गॉर्डर को जैक से उठाया गया था। इंजीनियरों को आशंका थी कि पिलर बहुत धीरे-धीरे धंस रहा है। सूत्रों के मुताबिक सेतु निगम और पीडब्ल्यूडी के इंजीनियरों की एक टीम सोमवार को कोलाघाट के पुल का निरीक्षण करने जाने वाली थी लेकिन इससे पहले ही यह हादसा हो गया। टीम के इंजीनियर पिलर पर निशान लगाकर अगले दिन उसका परीक्षण करते जिससे पता चलता कि वह रोजाना कितने सेंटीमीटर धंस रहा है। ऐसे में यह अनुमान लगाना कठिन न होता कि हार्ड स्ट्रेटा (कठोर परत) में परिवर्तन हो रहा है जिसकी वजह से पुल धीरे-धीरे धंसता जा रहा है। एक्सपर्ट इंजीनियरों के मुताबिक पिलर में गड़बड़ी के संकेत तो मिल रहे थे लेकिन यह अनुमान ही नहीं लगाया जा सका कि इतनी जल्दी ढह सकता है। हालांकि अभी इंजीनियरिंग विभाग हादसे की वजह पता कर रिपोर्ट तैयार कर रहा है।

ये हो सकती है हादसे की वजह

इंजीनियरिंग के एक्सपर्ट का कहना है कि पुल बनाते समय पिलर नदी की ऐसी जगह पर बनाया जाता है जहां पानी के नीचे कठोर परत (हार्ड स्ट्रेटा) मिलती है। कठोर परत के ऊपर बेस पर वेल (कुआं) बनाकर पिलर (पियर) खड़ा किया जाता है। कोलाघाट पुल के गिरने की एक वजह यह भी हो सकती है कि वक्त के साथ धीरे-धीरे परत की कठोरता खत्म हुई हो। परत मुलायम होने से पिलर का भार बर्दाश्त न होने से पुल ढह गया।

कम से कम एक साल का समय लगेगा

इंजीनियर के मुताबिक कोलाघाट के पुल के दो पिलर फिर से बनाने पड़ेंगे। पुल को पूर्ववत स्थिति में लाने के लिए कम से कम एक साल का समय लग सकता है। वह भी तब जब पुल निर्माण की प्रक्रिया काफी तेजी से चलाई जाए। इसमें दो करोड़ की लागत लगने का अनुमान है। हालांकि अभी प्रशासन छोटे वाहनों को निकालने के लिए पैंटून पुल पर विचार कर रहा है।

कोलाघाट के पुल का सफर

– 90 के दशक में कोलाघाट पुल को लेकर जन आंदोलन शुरू हुआ।

-1993 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने पुल का शिलान्यास किया था।

– 2002 में पुल को मंजूरी मिली।

– 2005-06 में 11 करोड़ की लागत से पुल का निर्माण शुरू किया गया।

– 2008 में पुल का निर्माण पूरा हुआ। सेतु निगम ने पुल पीडब्ल्यूडी को हस्तांतरित किया।

– 2009 को पुल का लोकार्पण तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने किया। आवागमन शुरू हुआ।

पिलर के कुएं को बनाने में हुई थी दिक्कत

कुछ स्थानीय लोगों ने बताया कि जब पुल का निर्माण चल रहा था तब कई अन्य पुल के कुएं आसानी से बन गए। पिलर नंबर सात के लिए कुएं का निर्माण शुरू हुआ तो सेतु निगम को काफी दिक्कत हो रही थी। कोई न कोई समस्या खड़ी होने से सेतु निगम के इंजीनियर परेशान हो रहे थे। बताते हैं कि कुछ लोगों की सलाह पर यहां हवन-पूजन करवाया गया जो चार दिनों तक चला। इसके बाद कुआं बनकर तैयार हुआ और उस पर पिलर का निर्माण किया गया।

सपा विधायक ने किया ट्वीट

सपा विधायक शरदवीर सिंह ने कोलाघाट पुल के ढहने पर मुख्यमंत्री को ट्वीट किया है। शरदवीर सिंह ने कहा कि पुल के निर्माण में लापरवाही के जिम्मेदार अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।

कोलाघाट में लगीं पांच नाव, मनमानी वसूली

कोलाघाट पुल टूटने के बाद ग्रामीणों ने अपनी पांच निजी नाव नदी में उतार दीं हैं। नाव चालक यात्रियों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए मनमानी उतराई वसूल कर रहे हैं। यात्रियों ने बताया कि नाव चलाने वाले बाइक सहित यात्री से 50 रुपये, साइकिल यात्री से 30 तथा पैदल यात्रियों से 20 रुपये ले रहे हैं। कोलाघाट पुल क्षतिग्रस्त होने की वजह से पूरा यातायात अल्हागंज से होकर बदायूं के लिए संचालित किया जा रहा है। इसके चलते यहां जाम की स्थिति बनी हुई है।

त्यागीजी महाराज के संघर्ष से बना था कोलाघाट पुल

रामगंगा और बहगुल नदी किनारे बसे मिर्जापुर और कलान क्षेत्र हर साल बारिश के कारण जिला मुख्यालय से कट जाता था। लोग बाढ़ के कारण पलायन के लिए मजबूर होते थे। लोगों की इस समस्या के चलते 90 के दशक में मिर्जापुर क्षेत्र के टापर गांव के संत त्यागीजी महाराज ने जन आंदोलन शुरू किया था। उन्होंने अपने ढाईगांव स्थित आश्रम में एक महीने तक आमरण अनशन किया था। इस आंदोलन को तहसील के हजारों लोगों ने समर्थन किया था। त्यागीजी महाराज के अनशन पर तत्कालीन भाजपा सरकार के लोक निर्माण मंत्री रामकुमार वर्मा, कैबिनेट मंत्री कलराज मिश्र, प्रभा द्विवेदी आदि ने अनशनस्थल ढाईगांव में आकर पुल निर्माण कराने का आश्वासन देकर अनशन समाप्त कराया था। यही नहीं पुल निर्माण में देरी होने पर त्यागीजी महाराज ने जरीनपुर गांव में मानव शृंखला बनाकर शासन-प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया था। त्यागीजी के भारी संघर्ष के बाद कोलाघाट पुल बना।

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