गोरखपुर, महराजगंज, देवरिया व कुशीनगर जिले की 28 विधानसभा सीटों वाले गोरखपुर मंडल के लोग बाढ़ से हर साल होने वाली बर्बादी, गोरखपुर शहर में जलभराव व गड्ढे वाली सड़कों की समस्याओं के साथ कानपुर के कारोबारी मनीष गुप्ता की पुलिसिया हत्या व वसूली का मुद्दा जरूर याद दिलाते हैं।
पांच वर्ष पहले रामगढ़ ताल जलकुंभी से पटा था। आज यहां लकदक चौड़ी सड़कें और वाटर स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स हैं तो लाइट-साउंड की मस्ती के साथ नौकायन का लुत्फ उठाने का मौका भी। कुशीनगर एयरपोर्ट, गोरखपुर का खाद कारखाना व एम्स का सपना इसी साढ़े चार साल में हकीकत में बदला। गोरखपुर व आसपास के जिलों की कई सड़कें न सिर्फ चौड़ी हुईं, बल्कि एयरफोर्स के एयरपोर्ट से पब्लिक उड़ान की शुरुआत भी हो गई है। प्रदेश की पहली आयुष यूनिवर्सिटी गोरखपुर के खाते में आई है, तो गोरक्षनाथ यूनिवर्सिटी ने भी संभावनाएं खोली हैं। पिपराइच में बंद चीनी मिल फिर चालू हो गई, तो गीडा में वर्षों बाद उद्योग लगाने के लिए भूमि आवंटन की शुरुआत भी हो गई है। पर, इस सबके बावजूद विधानसभा चुनाव की सारी चर्चाएं महंगाई, मुख्यमंत्री व प्रत्याशियों के टिकट पर जाकर ठहर जाती हैं।
गोरखपुर, महराजगंज, देवरिया व कुशीनगर जिले की 28 विधानसभा सीटों वाले गोरखपुर मंडल के लोग बाढ़ से हर साल होने वाली बर्बादी, गोरखपुर शहर में जलभराव व गड्ढे वाली सड़कों की समस्याओं के साथ कानपुर के कारोबारी मनीष गुप्ता की पुलिसिया हत्या व वसूली का मुद्दा जरूर याद दिलाते हैं। लोग मुख्यमंत्री की छोड़ी सीट पर लोकसभा उपचुनाव हराने का गुस्सा भी याद दिलाना नहीं भूलते। पर, इन सबके साथ वे सीटवार मुस्लिम-यादव की एकजुटता, हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की जमीन बनाते नेताओं के बयान, निषाद, सैंथवार, ब्राह्मण, पाल व ठाकुर जैसे जातीय समीकरण, अंचल से मुख्यमंत्री होेने के फायदे के साथ ही मोदी, मंदिर और मुफ्त अनाज जैसे फैक्टर भी गिनाना नहीं भूलते।
2017 के विधानसभा चुनाव में गोरखपुर मंडल की 28 सीटों में से 23 पर भाजपा व कुशीनगर की रामकोला सुरक्षित सीट पर सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) ने कब्जा किया था। सिर्फ कुशीनगर की तमकुहीराज सीट से अजय कुमार लल्लू (मौजूदा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष), चिल्लूपार से बसपा के विनय शंकर तिवारी, देवरिया के भाटपाररानी से सपा के आशुतोष उपाध्याय व महराजगंज जिले की नौतनवा सीट से निर्दल अमनमणि त्रिपाठी ही जीत पाए थे। इस चुनाव में सुभासपा सपा के साथ है। भाजपा में कई मौजूदा विधायकों के टिकट कटने की आशंका के बीच हर सीट पर तीन से पांच दावेदार उभर आए हैं। मुख्यमंत्री का गृह मंडल होने के नाते संगठन से सरकार तक की प्रतिष्ठा दांव पर है। सपा में भी कई सीटों पर 8-10 दावेदार हैं।
निषाद फैक्टर भी अहम
गोरखपुर मंडल की ज्यादातर सीटों पर निषाद, मल्लाह व साहनी जैसी जातियों का अच्छा प्रभाव है। भाजपा ने निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद को एमएलसी बना दिया है और उनके बेटे प्रवीण निषाद सांसद हैं। पर, सब कुछ अपने परिवार के लिए ही मांगने की वजह से बिरादरी में संजय के प्रति नाराजगी भी है। दूसरी ओर सपा के पास पूर्व मंत्री जमुना निषाद का परिवार व राम भुआल निषाद जैसे कद्दावर चेहरे हैं। ऐसे में कई सीटों पर 5 से 15 हजार वोट की हिस्सेदारी रखने वाले निषाद समाज का रुख विधानसभा चुनाव में अहम भूमिका निभाएगा।
पूरे नहीं हुए चीनी मिलों के वादे : लल्लू
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष व कुशीनगर के तमकुहीराज से विधायक अजय कुमार ‘लल्लू’ कहते हैं, कुशीनगर के तमकुहीराज, खड्डा व महराजगंज से लेकर गोरखपुर तक महीनों बाढ़ से जूझता रहा। फसलें बर्बाद हो गईं। कभी देवरिया व कुशीनगर जिले में 14 चीनी मिलें हुआ करती थीं। इनमें 13 बंद हैं। मोदी से लेकर योगी तक ने इन्हें चलाने का वादा किया था। गोरखपुर में मेट्रो, लाइट मेट्रो से लेकर रैपिड रेल तक की बातें हुईं, लेकिन जमीन पर ये कहीं नजर नहीं आ रही हैं। मेडिकल कॉलेज का उद्घाटन किया जा रहा है, लेकिन वहां संसाधन नहीं हैं।
सपा की पूर्व विधायक ने इरादे पर उठाया सवाल
देवरिया जिले के रामपुर कारखाना से समाजवादी पार्टी की पूर्व विधायक गजाला लारी कहती हैं कि महंगाई चरम पर है। किसानों का धान बिक नहीं पा रहा है। गन्ना किसानों का भुगतान बकाया है। गोरखपुर के इर्द-गिर्द छोड़ दीजिए तो मंडल में गड्ढामुक्ति का दावा पूरी तरह से खोखला है। जिस काम का हमने शिलान्यास किया, पूरा कराया, उसका इन्होंने उद्घाटन कर अपना पट लगा दिया। हमारे शिलान्यास का पट तक हटा दिया।
फिलहाल सपा दे सकती है चुनौती
गोरखपुर मंडल में फिलहाल मुख्य लड़ाई भाजपा गठबंधन और सपा गठबंधन के बीच नजर आ रही है। भाजपा ने पिछले चुनाव में कुछ सीटें सहयोगी दल सुभासपा व अपना दल के लिए छोड़ी थीं तो सपा ने सहयोगी कांग्रेस के लिए। इस बार भी भाजपा व सपा सहयोगी दलों के साथ आने की तैयारी कर रहे हैं। ज्यादातर सीटों पर बसपा के प्रभारी फाइनल नहीं होने से इस पार्टी के समर्थकों का रुख साफ नहीं है। वास्तविक तस्वीर प्रत्याशी फाइनल होने के बाद स्पष्ट होगी।
नौकरशाही बेकाबू
गोरखपुर जिले में करीब 40 वर्ष तक प्रधान रहे राम सहाय सिंह सैंथवार अपने नजरिए को अलग तरीके से रखते हैं। वह कहते हैं, योगी ईमानदार हैं, लेकिन नौकरशाही बेकाबू है। इसका भी गलत असर पड़ा है। वहीं, महराजगंज के लक्ष्मीपुर निवासी सोनू चौधरी कहते हैं कि जंगलों को जाने वाली सड़कें हजारों लोगों के आने-जाने का माध्यम हैं, लेकिन इस ओर आज तक किसी का ध्यान नहीं गया। वनवासी समुदाय को सरकारी सुविधाएं तो मिलने लगी हैं, लेकिन पिछड़ापन दूर करने के लिए कुछ और ठोस करने की जरूरत है। पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस की महंगाई सत्ताधारी दल की चुनौती बढ़ा सकती है।
बड़ा सवाल : योगी किस सीट से लड़ेंगे चुनाव
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अभी विधान परिषद के सदस्य हैं। 2022 के चुनाव में भी भाजपा ने उन्हें सीएम प्रोजेक्ट किया है। योगी के लिए गोरखपुर से लेकर अयोध्या तक की सीटों पर चुनाव लड़ने की अटकलें हैं।