फतेहाबाद. रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल के कारण हुई दोस्त की मौत (Death) ने इतना व्यथित किया की बैंक की सरकारी नौकरी (Bank Job) छोड़ वो जैविक उर्वरक बनाने में जुट गए. उद्देश्य एक ही था, बढ़ते रासायनिक खादों के प्रयोग से होने वाले दुष्प्रभाव के प्रति लोगों को जागरूक किया जा सके, ताकि उसके दोस्त की तरह किसी और को जान न गवानी पड़े. उनके इस प्रयास को अब पंख लगते नज़र आ रहे हैं. लोगों मे जैविक खाद और जैविक खेती के प्रति जागरूकता आने लगी है. मामला फतेहाबाद के टोहाना का है.
टोहाना के दीपक माड़िया जो कि बैंक की बढ़िया नौकरी में थे, उनके एक मित्र के साथ घटी घटना ने उनके जीवन का मकसद बदल दिया. दीपक कुमार ने बताया कि वह बैंक के अधिकारी थे, उनके किसी सहयोगी की तबीयत काफी बिगड़ गई तो उसका कारण रासायनिक खाद का प्रयोग फसलों में बताया गया. जिससे उनका इरादा बैंक की नौकरी छोड़कर जैविक खेती करने में बदल गया. जिसके फलस्वरूप उन्होंने कुछ वर्ष पहले सरकार के सहयोग से बायोगैस प्लांट लगाया.
इससे बनने वाले उत्पादों के बारे में जब अधिक जानकारी प्राप्त की गई तो पता चला कि जैविक खाद फसलों के लिए बिल्कुल हानिकारक नहीं है, जबकि रासायनिक खाद से की गई खेती मनुष्य के शरीर के अंगों पर बुरा असर डालती है. जैविक खाद फसलों और जमीन के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. इसके अच्छे परिणाम सामने आने पर उन्होंने इस धंधे को काफी बढ़ाया और आज उनके द्वारा निर्मित जैविक खाद की मांग उत्तरी भारत के अनेक राज्यों में निरंतर बढ़ रही है.
किसान इस तरफ अग्रसर हो रहे हैं तथा काफी सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं, अनेक लोग बीमारियों से भी छुटकारा पा चुके हैं. उन्होंने यह भी बताया कि जैविक खाद नाइट्रोजन भी हवा मिट्टी तथा वातावरण से प्राप्त कर लेती है, अगर सभी किसान ऐसा करने लगे तो विदेशों से आयात की जाने वाली रासायनिक खाद कि बिलकुल जरुरत नहीं पड़ेगी. क्योंकि यह जैविक खाद केवल वेस्ट मटेरियल पत्ते पौधों आदि से तैयार की जाती है जो की फसलों के लिए संजीवनी का काम करती है.